Hydrophonic Farming: हैल्लो मेरे प्यारे दोस्तों स्वागत है, आपका हमारे इस ब्लॉग में आज हम आपके लिए Hydrophonic Farming विधि के बारे में जानकारी लेकर आए है। जैसे जैसे वक्त बदल रहा है, हर चीज में तकनीक का प्रयोग किया जा रहा है। जिसके चलते खेती करने के तरीके में भी बदलाव आ गया है। अब आधुनिक विधि से खेती की जा सकती है। जिसे हाइड्रोपोनिक फार्मिंग कहते है। जिसके माध्यम से बिना मिट्टी के ही सब्जियों और पौधों को उगाया जाता है। जिससे किसान भी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
जिन इलाकों में मिट्टी की उर्वरता खत्म हो चुकी है या बहुत कम मिट्टी है, वहा इस तकनीक का प्रयोग किया जाता है। आपकी जानकारी के लिए बता दे की श्रीनगर में स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय के हेप्रेक विभाग ने इस विधि से अश्वगंधा व बच के पौधे 6 महीने में उगाये हैं। जिन्हें मिट्टी में उगने में एक से दो साल का समय लगता है। चलिए अब जानते है, “Hydrophonic Farming” के बारे में पूरी जानकारी।
Hydrophonic Farming क्या है?
हाइड्रोपोनिक फार्मिंग एक ऐसी विधि है, जिससे खेती करने के लिए मिट्टी की जरूरत नहीं होती। इससे बिना मिट्टी का इस्तेमाल किए आधुनिक तरीके से खेती की जाती है। जो केवल पानी या बालू और कंकड़ में की जाती है।
इन पौधो को उगने के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की जरूरत होती है, जैसे कि नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटैशियम के साथ पोषक युक्त पानी उपलब्ध कराया जाता है। पानी को पौधे की जड़ों पर टेढ़े रासायनिक प्रवाह के रूप में छिड़काव किया जाता है। इसके अलावा टपक सिंचाई प्रणाली का भी प्रयोग किया जा सकता है।
Hydrophonic Farming में मिट्टी की जरूरत नहीं होती है।
इस विधि में पौधों या सब्जी को उगाने के लिए मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है। बल्कि यहाँ पानी काम करता करता है, जिससे पौधे में तेजी से वृद्धि होती है। इस विधि में मिट्टी का इस्तेमाल करने की बजाय परलाइट, कोको कॉयर, रॉक वूल, क्ले पेलेट्स, पीट मॉस या वर्मीक्यूलाइट उत्पादकों का प्रयोग किया जाता है।
हाइड्रोपोनिक सिस्टम में विभिन्न स्रोत भी आ सकते है, जैसे मछली का मलमूत्र, बत्तख की खाद, या रासायनिक उर्वरक। आपको बता दे की हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से खेती करने में 15 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, और इसमें 80 से 85 प्रतिशत आर्द्रता वाली जलवायु में उचित ढंग से खेती की जा सकती है।
Hydrophonic Farming तकनीक से अश्वगंधा की खेती
आपकी जानकारी के लिए बता दे की श्रीनगर में स्थित गढ़वाल विश्वविद्यालय के हेप्रेक विभाग ने इस विधि से अश्वगंधा व बच के पौधे की खेती की गई है। सूत्रों के अनुसार उस विद्यालय की छात्रा पल्लवी कहती है, की उनके द्वारा यहां ग्लास हाउस में अश्वगंधा को उगाया गया है। आगे वह बताती हैं, कि अश्वगंधा के पौधे को उन्होंने 6 महीने में ही सेकेंडरी मेटाबोलाइट से उसी मात्रा में निकाला है।
जिसे सामान्य विधि से दो साल के समय के बाद ही पौधे से सेकेंडरी मेटाबोलाइट निकाल सकते हैं। इसके अलावा उन्होंने बच का पौध भी उगाया गया है। जिसे समान्य विधि से एक साल का समय लगता है, लेकिन हाइड्रोपोनिक फार्मिंग से इससे वहीं पोषक उन्ही पोषक तत्व के द्वारा 6 महीने में उगाया गया है।
Hydrophonic Farming के लाभ
- जहाँ कही जमीन की कमी है, या जमींन है ही नहीं वहा इस हाइड्रोपोनिक्स विधि से खेती की जाती है। जिससे किसानो को बहुत लाभ होगा।
- हाइड्रोपोनिक खेती कम वाष्पीकरण के अधीन होती हैं। इसमें तापमान, आर्द्रता और वायु संरचना को नियंत्रण किया जाता है, जो कम प्रदूषण और कचरे के कारण पर्यावरण के लिए बेहतर होते हैं।
- हाइड्रोपोनिक विधि से पौधे मिट्टी के पौधों की तुलना में जल्दी बढ़ते हैं।
- हाइड्रोपोनिक से पानी की भीं बचत होती है। इस विधि में पानी का पुनर्चक्रण किया जाता है। मिट्टी के पौधे की तुलना हाइड्रोपोनिक पौधे में 10% कम पानी का उपयोग कर सकते हैं।
Conclusion
आज की इस पोस्ट में हमने आपको “Hydrophonic Farming” के बारे में जानकारी दी है। आशा करते है, कि आपको हमारे द्वारा दी गई पूरी जानकारी पसंद आई होगी।